Monday, May 20, 2024
Homeकाम की बातHawan Main Swaha Ka Arth: हवन बिना स्वाहा बोले क्यों माना जाता...
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Hawan Main Swaha Ka Arth: हवन बिना स्वाहा बोले क्यों माना जाता है अधूरा? जानें इसके पीछे का राज

India News CG (इंडिया न्यूज), Hawan Main Swaha Ka Arth: हिंदू धर्म में यज्ञ या हवन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी भी प्रकार का शुभ या मांगलिक कार्य हो सभी की शुरुआत हवन से ही होती है। हवन करने की यह परंपरा बहुत प्राचीन मानी जाती है। प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनि भगवान को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ या हवन आदि करते थे। प्राचीन काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी निभाई जाती है और किसी भी शुभ कार्य, यज्ञ या हवन आदि से पहले भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए यज्ञ या हवन किया जाता है।

यज्ञ या हवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज भगवान को अर्पित करना है। हवन में आहुति देने के लिए बार-बार स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता है और जितनी बार स्वाहा का उच्चारण किया जाता है, उतनी बार हवन में आहुति दी जाती है। लेकिन आइए जानते हैं कि यज्ञ या हवन में आहुति देते समय स्वाहा शब्द का उच्चारण क्यों किया जाता है।

स्वाहा का अर्थ

जब भी शुभ या मांगलिक कार्यों के लिए हवन किया जाता है तो स्वाहा बोलते हुए हवन सामग्री की आहुतियां हवन कुंड में डाली जाती हैं। स्वाहा का अर्थ है सही तरीके से पहुंचाना। यानी मंत्र के साथ दी गई आहुति स्वाहा बोलने के बाद ही अग्निदेव तक ठीक से पहुंचती है और अग्निदेव इस आहुति को स्वीकार करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि कोई भी यज्ञ या हवन तब तक सफल नहीं माना जाता जब तक कि देवता उस हवन या यज्ञ को स्वीकार न कर लें और देवता उस हवन को तभी स्वीकार करते हैं जब उसे अग्नि के माध्यम से स्वाहा के माध्यम से अर्पित किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वाहा को अग्निदेव की पत्नी भी माना जाता है। हवन के दौरान स्वाहा बोलने को लेकर कुछ प्रचलित कथाएं हैं, जानिए उनके बारे में।

स्वाहा से सम्बंधित पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार स्वाहा राजा दक्ष की पुत्री थीं जिनका विवाह अग्निदेव से हुआ था। इसलिए जब भी अग्नि में कोई आहुति दी जाती है तो अग्निदेव के साथ उनकी पत्नी स्वाहा का भी स्मरण किया जाता है और तभी अग्निदेव हवन में दी जाने वाली आहुति को स्वीकार करते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार, स्वाहा का जन्म स्वयं प्रकृति की एक कला के रूप में हुआ था और स्वाहा को भगवान कृष्ण द्वारा आशीर्वाद दिया गया था कि देवताओं के लिए बनाई गई कोई भी सामग्री तब तक देवताओं तक नहीं पहुंच पाएगी जब तक कि वह स्वाहा को समर्पित न हो। इसी कारण से जब भी अग्नि में कोई खाद्य पदार्थ या पूजन सामग्री अर्पित की जाती है तो स्वाहा का उच्चारण करना जरूरी माना जाता है।

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