रायपुर से 80 किलोमिटर दूर कांकेर जिले में कोयलीबेड़ा ब्लॉक का परिवार सोना निकालने के काम में लगा है। यह काम आज-कल में शुरु नहीं किया गया है, बल्कि ये उनका पुश्तैनी काम है। मतलब ये काम लगभग 150 सालों से भी पहले से किया जा रहा है। इस परिवार को सोनझरिया परिवार के नाम से जाना जाता है जो कि नदी की रेत से सोना निकालने का काम करते हैं। सोनझरिया परिवार के लोगों का कहना है कि सोनझरिया एक जनजाती है जो एक परिवार के तरह रहते है। इस जनजाती में लगभग 300 लोग हैं और वे नदी के रेत से सोना निकालने का काम करते हैं।
हमारे देश को सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि हमारे देश की धरती एक समय पर सोना उगलती थी। इस जनजाती का कहना है कि सोना होने के बाबजूद यह जनजाती भूखे सोने के लिए इसलिए मजबूर है, क्योंकि उसकी दो वजह हैं। पहला, कि वो कहते है कि नदी से जो सोना आता है वो काफी कम मात्रा में आता है और इसे तरासने में काफी वक्त लगता है। दूसरी वजह यह बताते हैं कि वे नहीं चाहते है कि जबरदस्ती नदी से उपकरणों के माध्यम से सोना निकाला जाए, जिससे भविष्य में इनकी आने वाली पीढ़ी इस काम से वंचीत हो जाए। इनका मानना है कि उनकी समुदाय इसी काम के लिए जानी जाती है और अगर ये काम खत्म हो गया तो इनकी पहचान छीन जाएगी।
बता दें कि आज तक किसी को भी सोने का स्त्रोत का पता नहीं चल पाया है। हालांकि भूवैज्ञानिकों का कहना है कि नदी तमाम चट्टानों के बीच से होकर गुजरती है, जिसके कारण घर्षण की वजह से सोने के कण इसमें घुल जाते है।