India News CG ( इंडिया न्यूज ),Goncha mahaparva: गोंचा महापर्व का 615 साल पुरानी परंपरा के साथ समापन हुआ। इस महापर्व में भगवान जगन्नाथ को तुपकी (पारंपरिक बंदूक) से सलामी दी गई। इस समारोह में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और इस अद्वितीय परंपरा को जीवंत रखा। 22 जून से ऐतिहासिक गोंचा पर्व की शुरुआत हुई थी।
सबसे लंबे त्योहारों में से एक है गोंचा महापर्व
बस्तर में सोमवार को ऐतिहासिक गोंचा महापर्व धूमधाम से मनाया गया। जहां भगवान जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा निकाली गई। गोंचा 615 सालों से मनाए जाने वाले सबसे लंबे त्योहारों में से एक है। भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र मौसी के घर जनकपुरी से जगन्नाथ मंदिर रवाना हुए। इस रथयात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए और पूरे नगर में भक्तिमय वातावरण बना रहा। रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के सामने तुपकी से सलामी दी, जो इस पर्व का मुख्य आकर्षण है।
इसकी शुरुआत 615 साल पहले हुई
गोंचा महापर्व की शुरुआत 615 साल पहले हुई थी और तब से यह परंपरा निरंतर जारी है। इस महापर्व का आयोजन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को सजाकर रथ पर बिठाया जाता है और नगर के प्रमुख मार्गों से होकर रथयात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु ने तुपकी से भगवान को सलामी दी।
इस दिन होगी देव उठनी की रस्म
समापन समारोह में नगर के प्रमुख लोगों ने भी भाग लिया और भगवान जगन्नाथ को तुपकी से सलामी देकर इस परंपरा को जीवंत रखा। 17 जुलाई को देव उठनी रस्म निभायी जाएगी। करीब 27 दिनों तक पर्व के रस्मों को धूमधाम से मनाया गया। रथ यात्रा के आखिरी दिन सोमवार को सीरासार भवन में बने जनकपुरी से भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के विग्रहों को विशालकाय तीन रथों में रथारुढ़ कर जगन्नाथ मंदिर लाया गया।