India News (इंडिया न्यूज़), Diwali 2023: दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार आज खुद रोशनी को मोहताज होते जा रहे हैं। आलीशान बंगलों पर सजी चाइनीज लड़ियां बेशक लोगों के मन को खूब भाती हों, लेकिन इन बंगलों के नीचे भारतीय परंपरा को निभाते आ रहे कुम्हारों की माटी दबी पड़ी है।
भारतीय प्रजापति हीरोज आर्गनाइजेशन के पंजाब प्रधान अमरजीत सिंह निज्जर की अगवाई में जिला प्रधान रामफूल, वाइस चेयरमैन राजीव कुमार, पंजाब जनरल सचिव गुरप्रीत सिंह डब, पंजाब सेक्रेटरी डा. बलबीर सिंह लहरी और सीनियर वाइस प्रधान धर्मपाल ने बताया कि महंगा हो चुका सरसों का तेल, लकड़ी, कोयला, तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल उपले, ढाई से तीन हजार रुपए में चिकनी मिट्टी ट्राली रेत खरीदकर दीए बनाकर कुम्हार मुनाफा नहीं कमा रहे, बल्कि अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज को जीवंत रखने का प्रयास कर रहे हैं।
एक छोटे से दीपक को बनाने में मिट्टी खरीदने से लेकर दीपक भट्टी में तपाने तक कितना बड़ा संघर्ष होता है, तब जाकर अपनी संस्कृति को निभा पाते हैं। उन्होंनो कहा कि 15 साल पहले जहां 25 पैसे के दीपक में कुम्हार को अच्छी बचत हो जाती थी, वहीं मार्किट में चायनीज़ लाईटों को पछाड़ने के चक्कर में एक दीपक 1 रूपये में बेचने को मजबूर हैं। वाइस प्रधान विजय कुमार हैप्पी, वाइस प्रधान शरनजीत सिंह, सैक्टरी लाल चंद कहते हैं कि वे मिट्टी के बर्तन, दीपक, घड़े बनाने का काम केवल उनकी सभ्यता और संस्कृति के लिहाज और अपने भरण पोषण के लिए करते हैं, अन्यथा इससे उन्हें कोई मुनाफा नहीं है।
आधुनिकता के इस दौर में दिवाली मौके अब दीपक बनाने की परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। कुम्हारों की नई पीढ़ी अब इस कला से दूरी बना रही है जिसके कारण यह कला आहिस्ते-आहिस्ते अपने खात्मे के कगार पर पहुंचती जा रही है। ढपई मुहल्ले में कुम्हारों के 20 परिवार मिट्टी के दीये बनाने का काम करते हैं ये लोग साल भर दिवाली का इंतजार करते है। यह लोग करीब तीस हजार दीए तैयार करके बजार में बेचते हैं। आजकल की पीढ़ी इस काम को सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है क्योंकि इस काम में आमदनी नहीं है। इन कुम्हारों को सरकारी रूप से आज तक कोई फायदा नहीं मिला।
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