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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म पूरी, माता की डोली का किया स्वागत

• LAST UPDATED : October 5, 2022

इंडिया न्यूज़,Chhattisagrh : World Famous Bastar Dussehra : बस्तर जिले में चलने वाली 75 दिनों तक विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की महत्वपूर्ण मावली परघाव की रस्म मंगलवार देर रात पूरी हो गई है। दंतेवाड़ा से आई मां दंतेश्वरी की डोली के स्वागत के लिए हजारो की संख्या में लोग पहुंचे हुए थे। छत्र का राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव परिवार ने माता की डोली का जोरदार स्वागत किया।  पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया। इस अवसर पर जमकर आतिशबाजी की गई। इस रस्म को पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की गई। हजारों की संख्या में भक्त पहुंचे हुए थे।

फूलों का ताज पहनकर करते है डोली का स्वागत 

World Famous Bastar Dussehra

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बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि, बस्तर में अब तक जितने भी राजा थे सभी इस रस्म की अदायगी के समय कांटा बंद (राजा के सिर में फूलों का ताज) पहनकर ही माता की आराधना करने आते थे हैं। मैं भी इसी परंपरा को निभा रहा हूं। यह कांटा बंद का फूल बस्तर के जंगल में मिलता है। इसकी अपनी एक अलग विशेषता है। उन्होंने कहा कि, इसे पहनकर मां दंतेश्वरी और मां मावली के छत्र और डोली को साष्टांग प्रणाम कर डोली को कंधे में उठाकर राजमहल लाया हूं। माता बस्तर दशहरे में शामिल होंगी। जब तक माता की विदाई नहीं होती, तब तक माता राजमहल प्रांगण में ही रहेंगी। उन्होंने कहा कि, माता हमारी ईष्ट देवी हैं। बस्तर दशहरे में शामिल होने सदियों से आ रहीं हैं।

राज परिवार के सदस्य करते है डोली का स्वागत 

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जानकारी के अनुसार, सालों से चली आ रही ये परंपरा इसी विधि के अनुसार अपनाई जाती है। हर वर्ष माता की डोली का स्वागत रस्म के अनुसार राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव द्वारा किया गया । उन्होंने आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को मंगल पत्रक भेंट कर बस्तर दशहरा में शामिल होने निमंत्रण दिया था। पूजा अर्चना करने के बाद माता की डोली को अष्टमी के दिन छत्र को जगदलपुर के लिए रवाना किया गया था। अष्टमी की देर रात छत्र और डोली जगदलपुर पहुंचीं। जिसके बाद नवमी के दिन परंपरा के अनुसार बस्तर के राजा कमलचंद भंजदेव द्वारा माता की डोली का जोरदार स्वागत करने के लिए पहुंचे।

जोगी उठाई रस्म हुई पूरी

इस रस्म के साथ कल मंगलवार की शाम को जगदलपुर के सिरहासार भवन में जोगी उठाई की रस्म को भी पूरी किया गया । इस रस्म के अनुसार जोगी 9 दिनों से उपवास रहकर एक कुंड में बैठ माता की आराधना और तपस्या किए। इस रस्म के आखिरी दिन नवमी को जोगी को उठाकर माता की डोली के स्वागत के लिए लाया जाता है। बस्तर दशहरा में इस रस्म को बेहद महत्वपूर्ण दिया जाता है।

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