India News (इंडिया न्यूज़), CG Election 2023: छत्तीसगढ़ में जनसंघ के समय से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले तक की राजनीति कुछ अलग अंदाज में होती थी। यह उस समय का दौर था जब प्रतियाशियों को लेकर ना कोई प्रतिस्पर्धा थी और ना ही सियासी मनमुटाव। सब-कुछ अपने हिसाब से चलता था। हमने तो राजनीतिक सौहार्द्र का वह दौर भी देखा है जब एक विधानसभा में दो उम्मीदवार हो जाते थे।
बता दें कि जनसंघ के जमाने से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य गठन तक की राजनीति कुछ अलग तरीके से होती थी। यह वह दौर था जब सब-कुछ अपने हिसाब से चलता था। हमने तो राजनीतिक सौहार्द्र का वह दौर भी देखा है जब एक विधानसभा में दो उम्मीदवार हो जाते थे तो शीर्ष नेतृत्व से पहले ही आपस में यह तय कर लिया करते थे कि हम नहीं आप चुनाव लड़ेंगे। हम सब आपके लिए काम करेंगे। वर्ष 1977 का आम चुनाव हो या फिर उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं के कंधे पर अहम जिम्मेदारी हाेती थी।
वाल उम्मीदवारों के नाम और पार्टी के चुनाव चिन्ह को दीवारों पर रंगना हो या फिर लुभावने नारा लिखना हो सब कुछ कार्यकर्ता खुद ही किया करते थे। स्व. दिलीप सिंह जूदेव के कट्टर समर्थक व पूर्व सांसद प्रतिनिधि नंदू सोनी बताते हैं कि चुनाव से तकरीबन दो महीने पहले हमारी तैयारी शुरू हो जाती थी। दुकानों से ब्रश और गेरू खरीदकर रख लिया करते थे। जैसे ही टिकट की घोषणा होती थी।
विधानसभावार दीवारों पर नारे लिखने और उम्मीदवार के नाम के साथ ही पार्टी का निशान और वोट की अपील लिखने का काम शुरू हो जाता था। सुबह पांच बजे घर से निकलना और शाम होने के पहले तक दीवारों पर नारे लिखने का काम किया करते थे। जिस गांव में जाते थे वहीं के कार्यकर्ता के घर नाश्ता और दोपहर का भोजन भी हो जाता था। उस दौर में कार्यकर्ताओं के घर स्नेह और सम्मान दोनों मिलता था। जब ये सब मिलता था तो कान की थकान दूर होती थी और उत्साह भी होता था।
उस दौर में प्रचार के लिए साइकिल से जाते थे। सुबह प्रचार के लिए निकलने से पहले साइकिल को दुरुस्त कर लिया करते थे। साइकिल में बड़ा सा झंडा बांधकर प्रचार के लिए गांव की ओर निकल पड़ते थे। जैसे ही गांव पहुंचते थे बच्चों की टोली घेर लेती थी,उनकी एक ही मांग हुआ करती थी बिल्ला, हैंडबिल। गांव में बच्चों की यही टोली हमारी सबसे बड़ी प्रचारक टीम हुआ करती थी। इनके जरिए हम घर-घर पहुंच जाते थे।