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छत्तीसगढ़ में लंपी वायरस का कहर, स्वस्थ पशुओं को रखें रोग ग्रस्त से अलग

• LAST UPDATED : August 9, 2022

इंडिया न्यूज़, Chhattisgarh News: अब गायों-बैलों में लंपी वायरस कहर बरपा रहा है। जिसके चलते राजस्थान, पंजाब, गुजरात के साथ-साथ देश के कई राज्यों में इस लंपी वायरस के कारण कई पशुओं की मौत हो चुकी है। प्रदेश में भी अब इस वायरस को लेकर अलर्ट जारी कर दिया गया है। प्रदेश में इस वायरस से संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखने की बात कही गई है।

दूसरे राज्यों से पशुओं को लाने पर रोक

इसके अलावा दूसरे राज्यों से छत्तीसगढ़ प्रदेश में पशुओँ के आने पर रोक लगाई है। जिस गांव के पशु इस वायरस से संकर्मित है वहां गोटपाक्स वैक्सीन से रिंग वैक्सीनेशन करने के आदेश दिए है। जिन पशुओँ को यह वायरस है उनका सैंपल लेकर राजधानी में राज्य स्तर पर भेजने की बात कही गई है। ताकि वायरस के बारे में और जांच की जा सके। इसी के चलते प्रदेश के सभी जिलों में सतर्कता बर्ती जा रही है। इसके अलावा जिन पशुओं को यह रोग है उनके लिए दवाइयां औषधियां उपलब्ध कराने की बात भी कही है। जिसके लिए राज्य बजट का भी प्रयोग किया जा सकता है।

वैक्सीन की खरीद

जानकारी के मुताबिक इस स्किन डिजीज को कंट्रोल करने के लिए गोट पाक्स नाम की वैक्सीन की खरीद शुरू करने के लिए बजट का 20 फीसदी हिस्सा लिया जा सकता है। पशु विभाग के अधिकारियों ने इस रोग से निपटने के लिए नियमों का पालन करने के निर्देश दिए है। जिन गावों के पशु रोग से ग्रस्त है। उनके नजदीक के गावों के लिए भी विशेष टीम का गठन किया गया है। इस वायरस के चलते जो पशु को यह रोग है। कोई भी व्यक्ति उसके सम्पर्क में आने से पहले अपने हाथों में दस्ताने का प्रयोग करने की बात कही है ।

18 जिलों की सीमाएं अन्य राज्यों से लगती

जानकारी के मुताबिक प्रदेश के 18 राज्यों की सीमाएं अन्य राज्यों से लगती है। जहां चेकिंग के लिए बूथ बनाए गए है, ताकि किसी भी राज्य से कोई रोग ग्रस्त पशु प्रदेश में न आ पाए। इसके अलावा किसी भी गांव में पशु मेले का आयोजन करने पर भी रोक लगाई गई है। इस प्रकार की गतिविधियों पर स्पेशल निगरानी भी रखी जाएगी।

जानें क्या है यह रोग

इस रोग से पशुओं में लम्पी स्किन डिजीज का संक्रमण फैलता है। इसमें एक से दूसरे पशु को छूने या फिर मच्छर व मक्खियों के द्वारा फैलता है। इसमें बुखार के साथ पशुओं को छोटी-छोटी गांठ शरीर पर बन जाती है। जो कुछ समय बाद घाव बन जाते है। जिसके चलते पशुओं की मौत हो जाती है।

इस प्रकार के लक्षण अगर किसी भी पशु में दिखे तो तुरंत उसका इलाज करवाना चाहिए। बता दें कि इसका पहला केस 1929 में अफ्रीकी देश जांबिया में मिला था। इसके बाद यह धीरे- धीरे अन्य देशो में भी फ़ैल गया। भारत में इसका पहला केस केरल में मिला था इसके बाद यह बीमारी अन्य राज्यों में भी बेकाबू होती हुई नज़र आई है।

यह भी पढ़ें : प्रदेश में एक महीने में आए 32 स्वाइन फ्लू के मरीज, दो नए केस की हुई पुष्टि

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