इंडिया न्यूज़, भोपाल:
Women’s Day Special 2022 आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day)है, पूरे विश्व में मातृ शक्ति के इस दिवस को बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। ऐसे में आज हम बात कर रहे हैं भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश(daughters of Madhya Pradesh) की बेटियों की। जिन्होंने मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते हुए भी देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी भारत के नाम को रोशन किया है। इनमें एमपी की गोल्डन गर्ल (golden girl Kaveri Dhimar of mp)कही जाने वाली सीहोर (sehore) की खिलाड़ी कावेरी ढीमर, भोपाल की दिव्यांग खिलाड़ी गौरांशी शर्मा(Gauranshi Sharma, a disabled player from Bhopal) और ग्वालियर की रहने वाली खिलाड़ी प्राची यादव (Prachi Yadav, a player from Gwalior)सहित कई अन्य ऐसी महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने राज्य ही नहीं बल्कि देश का नाम भी रोशन किया है। आज हम आपको इन्हीं के संघर्ष की कहानी बताने जा रहे हैं।
कायाकिंग कैनोइंग खिलाड़ी कावेरी ढीमर
मध्य प्रदेश के सीहोर की रहने वाली कावेरी ढीमर अपने पिता के साथ इंदिरा सागर बांध में अपने पिता के साथ मछली पकड़ने का काम करती थी। लेकिन कावेरी की मंजिल यह नहीं थी वह अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने का सपना मन में संजोय हुए थी। जिसे उसने कायाकिंग कैनोइंग में अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए एक दो नहीं बल्कि 17 गोल्ड और पांच सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया। यही नहीं महज 19 साल की आयु में ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपने नाम का लोहा मनवा चुकी है।
दिव्यांग खिलाड़ी गौरांशी शर्मा भोपाल की रहने वाली है वाली है, भगवान ने उसे सुनने और बोलने की शक्ति नहीं दी है। लेकिन गौरांशी के नाम का डंका मध्य प्रदेश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बज रहा है। क्योंकि गौरांश ने बैडमिंटन कोर्ट में खेलते हुए अपने प्रतिद्वंधियों को पटखनी देते हुए वह कर दिखाया है जिसकी कल्पना कभी गौरांशी का मजाक उड़ाने वालों ने भी नहीं की थी। गौरांशी ने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलते हुए 5 रजत और 1 कांस्य पदक अपने नाम किए हैं। वहीं इसे मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 में एकलव्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया है। गौरांशी का मानना है कि कभी भी इंसान को अपनी कमियों से हार नहीं माननी चाहिए। बता दें कि गौरांशी चीन के ताइपे में वर्ल्ड डीफ बैडमिंटन चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर की रहने वाली प्राची यादव पैरालंपिक में कैनोइंग के फाइनल में पहुंचने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनी हैं। प्राची बचपन से ही दिव्यांग हैं, वह पहले तैराकी का अभ्यास किया करती थी। लेकिन कोच ने उसके हाथों की बनावट को देखते हुए उसे कायाकिंग और कैनोइंग में हाथ आजमाने की सलाह दी। प्राची ने अपना पहला खिताब महज सात साल की आयु में जीता था। तब प्राची ने जूनियर चैंपियनशिप में खेलते हुए गोल्ड मेडल जीत सबको चौंका दिया था। लेकिन तब प्राची को मां के देहांत होने का बहुत गम था। बता दें कि प्राची ने अपनी प्रैक्टिस भोपाल के एक छोटे से तालाब से शुरू की और आज दुनिया के नाम की धूम है।
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