कहानी उस बला की खूबसूरत तवायफ की, जो लड़ी थी चुनाव
ये किस्सा अंग्रेजों के दौर में लखनऊ के चौक इलाके की दिलरुबा जान का है
1920 में जब वह लखनऊ में नगर पालिका चुनावी मैदान में उतरी थी
चुनाव प्रचार में दिलरुबा जान के पीछे सैकड़ों की भीड़ होती थी
दिलरुबा की पीछे उमड़ती भीड़ देखकर कोई उनके खिलाफ मैदान में उतरने को तैयार नहीं था
फिर हकीम शमसुद्दीन नाम का हकीम मैदान में उतरा
'दिल दीजिए दिलरुबा को, वोट शमसुद्दीन को' नारा दीवारों पर लिखा गया
दिलरुबा जान के पीछे हुजूम चलता, शमसुद्दीन के पीछे गिने चुने लोग
हालाँकि, चुनावी नतीजों में दिलरुबा नहीं शमसुद्दीन ही जीते थे